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भद्रा में क्यों नहीं करते हैं शुभ कार्य आखिर क्या होती है भद्रा l what is bhadra l bhadrakal meaning - किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है.. क्योंकि भद्रा काल में मंगल-उत्सव की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है. इसलिए भद्रा काल में कोई भी आस्थावान व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता. इसलिए जानते हैं कि आखिर क्या होती है भद्रा और इसे क्योंअशुभ माना जाता है?
पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा शनि की बहन है.
शनि की तरह ही भद्रा भी स्वभाव भी कड़क हैं.
उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया
भद्रा में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया है.
लेकिन भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक कार्य फलीभूत होते हैं.
वैसे तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ है-कल्याण करने वाली
लेकिन अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टी करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं.
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है. जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है.
जब चन्द्रमा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक राशि में स्थित हो तो भद्रा का निवास स्वर्ग में होता है.
यदि चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में हो तो भद्रा पाताल में निवास करती है
और कर्क, सिंह, कुंभ, मीन राशि का चन्द्रमा हो तो भद्रा का भू-लोक पर निवास रहता है.
शास्त्रों के अनुसार धरती लोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है.
तिथि के पूर्वार्ध की दिन की भद्रा कहलाती है.
तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा को रात की भद्रा कहते हैं.
यदि दिन की भद्रा रात के समय और रात्रि की भद्रा दिन के समय आ जाए तो भद्रा को शुभ मानते हैं.
भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण है.कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्ल पक्ष की चर्तुथी, एकादशी के उत्तरार्ध में भद्रा रहती है
जबकि कृष्णपक्ष की सप्तमी-चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी-पूर्णमासी के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है.
यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देनी चाहिए
भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी ह्रदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित रहती है
जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है.
जब भद्रा कंठ में रहती है तो धन का नाश होता है.
जब भद्रा हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है.
जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं.
ऐसा माना जाता है कि दैत्यों को मारने के लिए गधा के मुख, लंबे पुंछ और तीन पैर युक्त भद्रा उत्पन्न हुई.
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की कन्या औ शनि की बहन हैं
भद्रा का वर्ण काला, केश लंबे , दांत बड़े और रूप अत्यंत ही भयंकर है.
जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुंचाने लगी
मंगल-कार्यों में उपद्रव करने लगी और सारे संसार को पीड़ा पहुंचाने लगी.
उसके दुष्ट स्वभाव को देख कर सूर्य देव को उसके विवाह की चिंता होने लगी
वे सोचने लगे कि इस दुष्टा कुरूपा कन्या का विवाह कैसे होगा?
सभी ने सूर्य देव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया
तब सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से उचित परामर्श मांगा.
ब्रह्मा जी ने तब विष्टि से कहा कि -'भद्रे, बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो और जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य करे तो उसमें विघ्न डालो.
जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना.
इस प्रकार उपदेश देकर बृह्मा जी अपने लोक चले गए.
तब से भद्रा अपने समय में ही देव-दानव-मानव समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी.
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